अस्पतालों में उपचार, स्कूल-कॉलेजों में एडमिशन और ट्रेनों में सीट के लिए वेटिंग की बात आप अक्सर सुनते होंगे। लेकिन क्या कभी आपने लोहार से खेती के औजार बनवाने के लिए भी वेटिंग की बात सुनी है? जी हां, ऐसा हो रहा है बागेश्वर में। पलायन से खाली हो रहे बागेश्वर जिले के तमाम गांवों में अब एक भी लोहार नहीं है। ऐसे में अब लोगों को खेती के पुराने उपकरणों की मरम्मत करानी हो या नये बनवाने हों, उन्हें इसके लिए 50-50 किलोमीटर तक का सफर कर बागेश्वर पहुंचना पड़ रहा है। पड़ोसी जिले अल्मोड़ा के सोमेश्वर तक से लोग इसी काम के लिए बागेश्वर पहुंच रहे हैं। लोगों से घिरे घन्नू लोहार उन्हें औजार तैयार करने के लिए 10 से 15 दिन बाद की तारीख देते हैं।
बागेश्वर-सोमेश्वर रोड में घन्नू लोहार(घनश्याम कुमार)के यहां सुबह छह बजे से कृषि उपकरणों की मरम्मत या नया बनाने के लिए लोगों का आना शुरू हो जाता है। आठ बजने तक घन्नू की झोपड़ीनुमा दुकान(आफर)में बैठने के लिए जगह नहीं बचती। घन्नू बताते हैं कि इन कामों के लिए उन पर बीस से ज्यादा छोटे-बड़े गांवों की जिम्मेदारी है। घन्नू कहते हैं कि लोगों का काम पूरा करने में कभी-कभी 10 से 15 दिन भी लग जाते हैं। दरअसल न लोगों के पास कोई विकल्प है और न ही मेरे पास।
लोहार का काम छोड़ दिया
ऐसा नहीं है कि लोहारों का ये संकट सदा से था। पलायन के साथ ये पीड़ा बढ़ती गई। बागेश्वर के पाचर गांव में कभी
लोहारी का काम करने वाले चनर राम बताते हैं गांवों में लोगों ने खेती करना छोड़ दिया है। ऐसे में हमने भी लोहारी छोड़ तीन खच्चर खरीद लिए। अब इन्हीं से रोजी रोटी चलती है। चनर राम की रिश्तेदारी में भी अब कोई लोहार का काम नहीं करता।
औजार बनाने को तारीख देता है घन्नू लोहार, कई दिनों की मिली है वेटिंग
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