पर्वतीय क्षेत्र में इगास पर्व (देवोत्थान एकादशी) धूमधाम और परंपरागत तरीके से मनाया गया। सभी ने भैलो नृत्य किया और एक दूसरे को इगास की बधाई दी। इस मौके पर महिलाओं ने पकवान बनाए और गोवंश की पूजा की। साथ ही पशुओं को मंडवा व जौ की बाड़ी और पिंडा भी खिलाया गया। भाबर क्षेत्र के अंतर्गत मोटाढांक में ग्राम्य एकता प्रगति प्रेमांजलि समागम समिति (गेप्स) की ओर से आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि पूर्व जिला पंचायत सदस्य एवं ग्राम प्रधान गणेश कंडवाल ने किया। उन्होंने कहा कि हमें अपनी भावी पीढ़ी को अपनी संस्कृति की समय-समय पर याद दिलाने की जरूरत है। नहीं तो यह लुप्त प्राय: हो जाएगी। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते संस्थापक निदेशक रामभरोसा कंडवाल ने प्रदेश सरकार से माधो सिंह भंडारी के इतिहास को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की। इस अवसर पर संजय थपलियाल, आशा देवी, सोम प्रभा देवी, डॉ. चंद्र मोहन बड़थ्वाल, झाबा देवी आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन अनुराग कंडवाल ने किया। उधर, लैंसडौन स्थित श्री सत्यनारायण मंदिर में देवोत्थान एकादशी पर भगवान की मूर्तियों को नए वस्त्र पहनाए गए। मान्यता है कि चार माह तक विश्राम अवस्था के पश्चात भगवान के उठनी का कार्यक्रम किया जाता है और उन्हें गर्म वस्त्र धारण पहनाए जाते हैं। कार्यक्रम का आयोजन श्री सत्यनारायण मंदिर की ओर से किया गया। ब्लॉक मुख्यालय जयहरीखाल और इसके आसपास के गांवों में भी महिलाओं ने गोवंश की पूजा की और उन्हें मंडुवे की बाड़ी और पिंडा बनाकर खिलाया।
भाजपा कार्यकर्ताओं ने क्षेत्रीय विधायक व विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण के कैंप कार्यालय में इगास पर्व मनाया। भाजपा कार्यकर्ताओं ने उत्साह के साथ भैलो खेला और एक दूसरे को पर्व की बधाई दी। कार्यक्रम का उद्घाटन नगर मंडल अध्यक्ष सुनील गोयल ने किया। इस मौके पर महिलाओं ने भी भैलो खेला। साथ ही चौफुला, धौला, छांछरी आदि नृत्यों की प्रस्तुतियां दीं। इस मौके पर वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ता राजगौरव नौटियाल, अमित भारद्वाज, महिला मोर्चा की नगर मंडल अध्यक्ष बीना रावत, भाबर मंडल अध्यक्ष पूनम खंतवाल, पंकज भाटिया, गौरव जोशी, मनोज कुंडलिया, रानी नेगी आदि मौजूद रहे। ग्राम्य एकता प्रगति प्रेमांजलि समागम समिति के मुख्य वक्ता आचार्य मनोज सकलानी ने कहा कि इगास का त्योहार 17वीं सदी से मनाया जा रहा है जो गढ़वाल के तत्कालीन वीर भड़ माधो सिंह भंडारी से जुड़ा हुआ है। एक बार वह तिब्बत के युद्ध में इतना उलझ गए कि दिवाली तक घर नहीं पहुंच पाए जिसके कारण वहां के लोगों ने दीपावली नहीं मनाई। दिवाली के कुछ दिनों बाद जब माधव सिंह के सुरक्षित होने और युद्ध विजय की खबर श्रीनगर गढ़वाल पहुंची तब राजा की सहमति पर एकादशी के दिन दिवाली मनाने की घोषणा हुई। तब से यह त्योहार उत्तराखंड में हर वर्ष मनाया जाता आ रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि भगवान श्री राम के अयोध्या लौटने का समाचार देवभूमि उत्तराखंड को दिवाली के 11 दिन बाद पता चला इस खुशी में भी इगास मनाई जाती है।
परंपरागत तरीके से मनाया इगास पर्व, गोवंश की पूजा की
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