उत्तराखंड प्रदेश में भूमि कानून में संशोधन पर अब बात आगे बढ़ती दिख रही है। इस संबंध में सरकार की ओर से पुनर्विचार के लिए गठित समित की तीसरी बैठक में अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार नए तेवर में दिखे। उन्होंने गढ़वाल-कुमाऊं मंडलायुक्त के साथ पांच जिलों के जिलाधिकारियों से स्पष्ट रूप से कहा कि समिति की ओर से मांगी गई सूचनाएं 15 दिन के भीतर उपलब्ध कराएं। वर्ष 2003-04 के बाद राज्य में भूमि के क्रय-विक्रय के बाद प्रयोजन और वर्तमान स्थिति के बारे स्पष्ट रूप से जानकारी उपलब्ध कराएं। इस संबंध में जारी किए गए प्रारूप के सभी 11 बिंदुओं पर सुस्पष्ट जानकारी दें। बताते चलें कि पिछले दिनों समिति की ओर से इस संबंध में जिलों से तमाम सूचनाएं मांगी गई थीं, जो उनकी ओर से आधी-अधूरी भेज दी गईं। इस पर समिति के अध्यक्ष ने कड़ा एतराज जताया। इस संबंध में सचिवालय में समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में बैठक आयोजित की गई। बैठक में सुभाष कुमार ने कहा कि पूर्व में जिला देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर, नैनीताल और पौड़ी से 11 बिंदुओं पर जानकारी मांगी गई थी, लेकिन खेद का विषय है कि इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर भी जिलों की ओर से आधी-अधूरी जानकारी भेज दी गई।
भूमि की खरीद के बाद क्या किया, कितनों को दिया रोजगार?
उन्होंने गढ़वाल कमिश्नर रविनाथ रामन और कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत से इस संबंध में जिलों से समन्यवय बनाकर 15 दिन के भीतर रिपोर्ट समिति को भेजने को कहा है। बैठक में समिति के अन्य सदस्य सेवानिवृत आईएएस डॉ.अरुण कुमार ढौंडियाल व डीएस गर्ब्याल, अजेंद्र अजय, सुशील कुमार, देवानंद आदि उपस्थित थे। इसके अलावा कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत व विभिन्न जनपदों के जिलाधिकारी वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से बैठक में उपस्थित हुए समिति के अध्यक्ष पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार ने बताया कि पिछले दिनों चुनाव के कारण समिति का कार्य आगे नहीं बढ़ पाया, लेकिन इससे पूर्व जिलों से भू-कानून में परिवर्तन के बाद जमीनों की खरीद-फरोख्त के संबंध में जानकारी मांगी गई थी। अधिकतर जिलों ने आधी-अधूरी जानकारी ही उपलब्ध कराई है। अब नए सिरे से रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है। इसमें यह भी पूछा गया है कि वर्ष 2003-04 के बाद राज्य में जो भूमि विभिन्न उद्यमों के एवज में क्रय की गई, उसकी वर्तमान स्थिति क्या है। जो उद्यम लगे हैं, उनमें कितने स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। यदि भूमि का सही उपयोग नहीं हुआ है तो जिलों की ओर से क्या कार्रवाई की गई है।
चुनाव के कारण लटकता चला गया मामला
प्रदेश में भू-कानून की मांग को लेकर उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950) में संशोधन के अध्ययन एवं परीक्षण के लिए गठित समिति उस तेजी से काम नहीं कर पाई, जिस तेजी के साथ इसे बनाया गया था। बीच में चुनाव प्रक्रिया के कारण भी इसमें बाधा आई। लेकिन खास बात यह है कि सत्तारूढ़ भाजपा के दृष्टि पत्र (घोषणा पत्र) में भी यह मुद्दा शामिल है। समिति के सदस्य अजेंद्र अजय ने बताया कि इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी काफी संजीदा हैं। उन्होंने व्यापाक हित में इस मुद्दे पर उचित निर्णय शीघ्र लिए जाने के निर्देश दिए हैं।
उत्तराखंड भू-कानून: समिति ने जिलाधिकारियों से कहा-15 दिन में बताएं, किसको कितनी भूमि दी, उसका क्या उपयोग हुआ
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