हल्द्वानी। साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कुमाऊंनी साहित्यकार स्व. मथुरादत्त मठपाल की 81वीं जयंती के अवसर पर एमबीपीजी कालेज में दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन हुआ। जीवित रहते उन्होंने कुमाऊंनी के 80 कथाकारों के गद्य साहित्य सुवा काथ को संपादित किया था। उनकी मृत्यु के एक साल बाद कुमाऊंनी के सौ कवियों का कविता संग्रह प्रकाशित हुआ और कार्यक्रम के दौरान उनके कुमाऊंनी काव्य संग्रह ‘ए गे बसंत बहार’ का विमोचन हुआ। कार्यक्रम कवियों ने कविताओं के माध्यम से स्व. मठपाल को याद किया।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.. एनएस बनकोटी की अध्यक्षता में दो सत्र में चले कार्यक्रम में पहले सत्र में बताया कि स्व. मठपाल के कविता संग्रह में कुमाऊंनी कविता के 200 साल के 100 वरिष्ठ कवियों को समेटा गया है। इसमें गुमानी, शिवदत्त सती, गौरदा जैसे पुराने कवियों की कविता है। इसके अलावा सुमित्रानंदन पंत, शैलेश मटियानी जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों की कविताएं भी हैं। दूसरे सत्र में हुई काव्य गोष्ठी में कवियों ने कविताएं प्रस्तुत की। जिसमें जगदीश जोशी, डॉ. गजेंद्र बटोही, डॉ. अमिता प्रकाश, दामोदर जोशी देवांशु, डॉ. प्रभा पंत, देवकीनंदन भट्ट, डॉ. दिवा भट्ट, दीपक भाकुनी, गोविंद बल्लभ, बल्ली सिंह चीमा, जीवन जोशी, नारायण सिंह बिष्ट, दीपांशु कुंवर, डॉ. प्रदीप उपाध्याय ने कवतिा सुनाई। हेमंत ने ‘कहते तो हो सभ्यता और संस्कृति में हम सबसे बड़े हैं, एक बिटिया को घेरे कितने लोग खड़े हैं’ कविता सुनाकर वाहवाही लूटी। इस अवसर पर नवेंदु मठपाल, डॉ. गिरीश पंत, हरिमोहन, हयात सिंह रावत, नंदिनी मठपाल मौजूद रहे। संचालन प्रदीप उपाध्याय ने किया।
आकर्षण का केंद्र रहा कुमाऊंनी साहित्य का स्टॉल
कार्यक्रम स्थल पर लगा कुमाऊंनी साहित्य का स्टॉल आकर्षण का केंद्र रहा। यहां दुदबोली पत्रिका के तीन हजार पन्नों का साहित्य था। शेरदा अनपढ़, गोपाल भट्ट, हीरा सिंह राणा की कविताओं का हिंदी अनुवाद का अंक था।
सभ्यता और संस्कृति में हम सबसे बड़े हैं, एक बिटिया को घेरे कितने लोग खड़े हैं….
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