पलायन से जूझ रहे उत्तराखंड को संभालने का जिम्मा तेजी से महिलाएं उठाने लगी हैं। आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं न सिर्फ पहाड़ की खेती संभाल रही हैं बल्कि, नौकरियों में भी तेजी से उनकी भागीदारी बढ़ी है। महत्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का आधे से अधिक काम भी महिलाएं ही कर रही हैं। साफ है यदि महिलाओं को ज्यादा अधिकार दिए जाएं तो आधी आबादी राज्य की बिगड़ते हालात को बदलने की क्षमता रखती हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में बीते पांच सालों में कामकाजी महिलाओं की संख्या में करीब पांच फीसदी तक का इजाफा दर्ज हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार एक साल तक लगातार रोजगार करने वाली महिलाओं की संख्या 2016 में जहां 15.1 फीसदी थी। 2021 में यह बढ़कर 21.6 फीसदी तक पहुंच गई है। महिलाएं उत्पादन व सेवा से जुड़े कामों में ज्यादा काम कर रही हैं। आर्थिक रूप से मजबूत होने के कारण घर से जुड़े हर निर्णय में उनकी राय की अहमियत भी बढ़ी है। करीब 91 फीसदी महिलाओं से परिवार से जुड़े कार्यों पर राय ली जाने लगी है। इसके अलावा बैंकिंग सेवाओं का भी महिलाएं खुद जमकर प्रयोग करती हैं। हालांकि अपना खुदका घर रखने वाली महिलाओं की संख्या में कुछ गिरावट दर्ज हुई है। पहले जहां 29 फीसदी महिलाओं के नाम घर था। वह अब घटकर 25 फीसदी पर पहुंच गया है।
45 फीसदी महिलाएं इंटरनेट चलाने वाली
प्रदेश में महिलाओं की शिक्षा का स्तर में सुधार हुआ है। वर्तमान में महिला साक्षरता दर करीब 80 फीसदी तक है। 45 फीसदी महिलाएं इंटरनेट चला सकती हैं। उत्तराखंड की 60 फीसदी महिलाओं के पास मोबाइल फोन उपलब्ध है। 80 फीसदी महिलाओं के अपने बैंक खाते हैं।
पहाड़ की खेती, नौकरियां और मनरेगा भी संभाल रही महिलाएं
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