देहरादून के मालदेवता सरखेत इलाके में बीते शुक्रवार की रात अतिवृष्टि से हुई भारी तबाही के बाद जहां सरकार और जिला प्रशासन युद्ध स्तर पर राहत कार्य चला रहा है। वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक इस आपदा के कारणों का पता लगाने में जुट गए हैं। जिससे भविष्य में इस प्रकार की घटना होने से पहले ही जन-धन को हानि से बचाया जा सके। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचॉद साईं ने बताया कि आपदा प्रभावित इलाकों में संस्थान के वैज्ञानिक भूस्खलन समेत तमाम पहलुओं पर अध्ययन कर रहे हैं।
अध्ययन में इस बात की जानकारी जुटाई जा रही है कि हिमालय की तलहटी वाले इलाके में मूसलाधार बारिश के चलते इतने बड़े पैमाने पर तबाही क्यों हुई? साथ ही भविष्य में इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं में जन-धन की हानि को कैसे कम किया जा सकता है। आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तराखंड में 84 ऐसे खतरनाक जोन चिन्हित किए हैं जो भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं। रिपोर्ट के मुताबिक श्री बदरीनाथ यात्रा मार्ग पर 150 किलोमीटर के क्षेत्र में 60 भूस्खलन संभावित जोन हैं।
260 फीट प्रति सेकंड की रफ्तार से मलबा आने से होती है भारी तबाही
वैज्ञानिक शोधों में यह बात सामने आई है कि मूसलाधार बारिश के चलते यदि मलबे की रफ्तार 260 फीट प्रति सेकंड होती है तो इससे संबंधित क्षेत्र में भारी तबाही मचने की संभावना रहती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि मालदेवता सरखेत इलाके में भी इसी रफ्तार से मलबा आया होगा।
बंगाल की खाड़ी में निम्न दबाव का क्षेत्र बनने, लो प्रेशर लाइन के उत्तराखंड पहुंचने से हुई भारी तबाही
देहरादून से सटे मालदेवता सरखेत में अतिवृष्टि के मामले में मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक एवं वरिष्ठ मौसम विज्ञानी विक्रम सिंह का कहना है कि बंगाल की खाड़ी में निम्न दबाव का क्षेत्र बनने और लो प्रेशर लाइन के उत्तराखंड पहुंचने की वजह से मूसलाधार बारिश होने के साथ ही भारी तबाही हुई। उन्होंने बताया कि गनीमत रही कि पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय नहीं है। यदि पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय होता तो और अधिक मूसलाधार बारिश होने के साथ ही भारी तबाही होती। उनके अनुसार अब बंगाल की खाड़ी में निम्न दबाव का क्षेत्र समाप्त हो गया है तो राजधानी दून समेत मैदान से लेकर पहाड़ तक मूसलाधार बारिश की संभावना बेहद कम हो गई है।
सरखेत में क्यों आई आपदा, पता लगाने में जुटे वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक
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