Tuesday, November 5, 2024
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उजड़े दरख्तों पर लौटने लगी हरियाली

भवाली। अंग्रेजों के शासन में जुल्म सिर्फ भारतीय जनता ने नहीं भुगते, बल्कि दरख्तों ने भी सजा पाई। अब उन्हीं उजाड़े गए पेड़ों के ठूंठ पर हरियाली लौट रही है तो इसकी वजह स्थानीय पर्यावरण प्रेमियों की जुनूनी कोशिश है। अंग्रेजों के जमाने में जिन पेड़ों को काटा गया था, उनकी जड़ें जमीन के भीतर रह गईं थीं। पर्यावरण प्रेमियों ने इन्हें सींचा तो नमी मिलने से कुछ समय बाद इन जड़ों में जीवन लौटा और कोपलें जमीन के भीतर से फूटने लगीं हैं। पहाड़ की चोटी पर छोटे-छोटे गड्ढे बनाकर उसमें पानी एकत्र करने से वहां के जल स्रोत रिचार्ज हो जाते हैं। बारिश के दौरान इसी बात को ध्यान में रखते हुए शिप्रा जन कल्याण समिति के अध्यक्ष प्रकृति प्रेमी जगदीश नेगी और उनकी टीम ने भवाली से घोड़ाखाल के समीप शिप्रा नदी के मुख्य जलग्रहण वाले क्षेत्र की चोटी पर कई गड्ढे और चाल-खाल बनाए। उनकी इस मुहिम में सेवानिवृत्त मृदा संरक्षक एवं कृषि अधिकारी लाल सिंह चौहान का अनुभव बेहद काम आया। बारिश के दौरान इन चाल-खालों में पानी भरा तो धीरे-धीरे वहां जमीन में नमी लौट आई। अब इस पहाड़ी पर काफल, बांज और बुरांश के हरे पेड़ों की कोपलें नजर आ रही हैं। इन पेड़ों की कोपलें देखकर समिति के लोग भी हैरत में पड़ गए हैं। इस बारे में वन अधिकारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि उस दौर में अंग्रेजों ने बोन फायर कैंप और सर्दी से बचने के लिए अलाव जलाने के लिए पेड़ कटवाए होंगे। उन्हीं पेड़ों की जड़ें मिट्टी में दबी रह गई होंगी। इस बारे में सेवानिवृत्त वन क्षेत्राधिकारी कैलाश चंद्र सुयाल ने बताया कि पहाड़ में काफल समेत अन्य पेड़ों की कई ऐसी प्रजातियां हैं, जिन्हें इंसान नर्सरी में या किसी अन्य विधि से उगाने का प्रयास करे तो उसमें काफी समय लगता है। बकौल सुयाल उन्होंने खुद वन विभाग में रहते हुए काफल को उगाने की बहुत कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली। उन्होंने बताया कि काफल, बांज और बुरांश की जो कोपलें नजर आ रही हैं उन्हें देखकर यही लगता है कि काफल समेत हिमालय की कई प्रजातियों के पेड़ अंग्रेजों के जमाने में काटे गए थे। जिन गड्ढों, चाल-खालों में पानी एकत्र हुआ उसके आसपास की जमीन में नमी पहुंची तो इन पेड़ों की जड़ों से नई कोपलें फूट गईं।
मेहनत का मिला सुखद परिणाम
भवाली। पर्यावरण प्रेमी जगदीश नेगी ने बताया कि इन गड्ढों और चाल-खालों से करोड़ों लीटर बारिश का पानी जमीन के भीतर गया है। यही करण है अब नए पेड़ उगने लगे हैं। उन्होंने कहा कि यह कार्य शिप्रा नदी के मुख्य जल ग्रहण क्षेत्र में घोड़ाखाल के समीप किया गया है। उन्होंने बताया कि वह अब तक करीब 200 से अधिक चाल-खाल और छोटे तालाब बना चुके हैं। नेगी इस कार्य के सुखद परिणाम से काफी खुश हैं।
पक्षी हैं असली पर्यावरण प्रेमी
सेवानिवृत्त वन क्षेत्राधिकारी कैलाश चंद्र सुयाल ने बताया कि सही मायने में असली पर्यावरण प्रेमी पक्षी हैं। काफल समेत कई हिमालयी प्रजातियां जो काफी प्रयासों के बाद भी नई उगाई जा सकती हैं, उस काम को पक्षी बड़ी आसानी से कर देते हैं। दरअसल, पक्षी जब काफल खाते हैं तो उसके बीज बीट के जरिये बाहर निकालते हैं जो कुछ ही समय में पौधे का रूप ले लेते हैं।

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