बागेश्वर। उत्तरायणी के मेले की कुमाऊं के प्रमुख व्यापारिक मेले के रूप में भी पहचान है। इस बार के मेले में भी हस्तशिल्पी उत्पाद लेकर पहुंचे हैं। लोग उत्पादों को हाथोंहाथ ले रहे हैं। चंपावत जिले के कमलेख लधौन निवासी दो भाई राजेश कुमार और सुभाष कुमार मेले में लोहे की कड़ाही और अन्य उत्पाद लेकर पहुंचे हैं। राजेश ने बताया कि उनके दादा और परदादा भी मेले में लोहे के उत्पाद लेकर आते थे। तब सड़क नहीं होती थी और इनके पूर्वज पैदल ही आते थे। उन्होंने बताया कि समय के साथ लोहे के उत्पादों की बिक्री में कुछ कमी आई है। फिर भी लोहे के उत्पादों के काफी खरीदार हैं। कई स्वादिष्ट पहाड़ी व्यंजन लोहे के बर्तनों में ही बनते हैं। राजेश और सुभाष के लोहे के उत्पाद 300 से लेकर 1,000 प्रति किलो तक की दर से बिक रहे हैं। उन्हें मेेले में लोहे के उत्पादों की अच्छी बिक्री होने की उम्मीद है।
मेले में 30 साल से कपड़ों का व्यापार कर रहे धारचूला के पुष्कर
बागेश्वर। उत्तरायणी के मेले में ऊन से बने उत्पादों की भी खासी मांग है। धारचूला के पुष्कर सिंह दुग्ताल करीब 30 साल से मेले में व्यापार करने आ रहे हैं। वह इस बार हाथ से बने शॉल, स्टॉल, चादर, दन, कालीन, पंखी लेकर आए हैं। पुष्कर ने बताया कि हाथ से बने होने के कारण उनके उत्पाद टिकाऊ होते हैं। लोग अपनी क्षमता और जरूरत के अनुसार सामान खरीद रहे हैं। पुष्कर के स्टाल में शॉल 500 से 2,000 रुपये, चादर 300 से 1,000, पंखी 600 से 800, दन 3,000 से 5,000 रुपये तक में बिक रही है।
30 साल से मेले में गर्म कपड़ों का व्यापार कर रहे धारचूला के पुष्कर
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