पूर्व मंत्री हरक सिंह बेटिकट ही रह गए। उत्तराखंड में पांचवीं विधानसभा का चुनाव इस बात का गवाह बनने जा रहा है कि चुनावी राजनीति का यह दमदार चेहरा पहली बार अपने ही टिकट के लिए तरसा और चुनाव मैदान से बाहर बैठने को मजबूर हो गया। कांग्रेस में वापसी के बाद हरक सिंह ने कई विधानसभा क्षेत्रों में अपने प्रभाव का हवाला देकर यह संकेत देने की कोशिश भी की कि वह गढ़वाल की किसी भी सीट से चुनाव लड़ने को तैयार हैं। कांग्रेस ने वादे के अनुसार उनकी पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं को तो टिकट थमाया, लेकिन उससे ज्यादा भरोसा नहीं किया। वहीं, हरक सिंह रावत ने कहा कि इस बार मेरी विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं थी।भाजपा में तीन टिकट के लिए खम ठोकते रहे हरक सिंह रावत कांग्रेस में लौट तो गए, लेकिन ज्यादा टिकट की उनकी इच्छा अधूरी ही रही। तीसरी और अंतिम सूची बुधवार को जारी होने के साथ यह भी स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस में भी हरक को खुलकर खेलने का मौका नहीं मिलेगा। बीती 12 जनवरी की देर शाम हरक सिंह के दिल्ली पहुंचकर कांग्रेस में जाने की भनक लगते ही भाजपा ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने के साथ ही पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया था। भाजपा ने हरक और उनके बहाने पार्टी में अन्य को जो संदेश देने में देर नहीं लगाई।
पहली बार टिकट को तरसे हरक सिंह, चौबट्टाखाल से भी नहीं मिला मौका; गवाह बनने जा रही पांचवीं विधानसभा
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