ऐसा कहा जाता है कि उत्तराखंड में जिस पार्टी का विधायक गंगोत्री से चुनकर जाता है, उसी पार्टी की प्रदेश में सरकार बनती है। प्रदेश की सत्ता से जुड़ा ये मिथक 1952 से अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से चला आ रहा है। इस बार भी यह मिथक बरकरार रहा। गंगोत्री से भाजपा प्रत्याशी सुरेश चौहान ने चुनाव जीता है और प्रदेश में भाजपा पूर्ण बहुमत में है।
1952 में हुआ था सबसे पहला आम चुनाव
आजादी के बाद सबसे पहला आम चुनाव 1952 में हुआ। 1952 में उत्तरकाशी सीट से जयेंद्र सिंह बिष्ट निर्दलीय चुनाव जीते और फिर कांग्रेस में शामिल हो गए। उस समय उत्तर प्रदेश में गोविंद बल्लभ पंत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। दोबारा 1957 में विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस के जयेंद्र सिंह बिष्ट निर्विरोध निर्वाचित हुए। लखनऊ में कांग्रेस की सरकार बनी।
1958 में विधायक जयेंद्र सिंह बिष्ट की मृत्यु के बाद कांग्रेस के ही रामचंद्र उनियाल विधायक बने। इस बीच टिहरी रियासत का हिस्सा रहा उत्तरकाशी वर्ष 1960 में अलग जनपद के रूप में अस्तित्व में आ गया। लेकिन, मिथक बरकरार रहा। 1962, 1967 और 1969 में कांग्रेस के ठाकुर किशन सिंह जीते तो सरकार कांग्रेस की बनी। 1974 कांग्रेस के बलदेवसिंह आर्य चुनाव जीते और सरकार कांग्रेस की बनी। वर्ष 1977 में जनता पार्टी से बरफियालाल जुवांठा ने चुनाव लड़ा तो प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी। 1991 में भाजपा के ज्ञानचंद जीते और राज्य में भाजपा की ही सरकार बनी। 1993 सपा के बर्फियालाल जुवांठा जीते तो सपा की सरकार बनी। 1996 में भाजपा के ज्ञानचंद विधायक बने तो सरकार भाजपा की बनी। फिर उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उत्तरकाशी विधानसभा का नाम गंगोत्री हुआ। लेकिन, राज्य गठन के बाद हुए पहले चुनाव से लेकर अभी तक मिथक बरकरार रहा।
2022 के इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुरेश चौहान ने चुनाव जीता है। प्रदेश भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला है, जिससे प्रदेश में भाजपा की ही सरकार बन रही है। ऐसे में सात दशक से यह मिथक अपना वजूद बनाए हुए है। समय के साथ भले ही चुनाव के तौर-तरीके सिरे से बदल गए हों, लेकिन उत्तराखंड में राजनीतिक दल भी इस मिथक को नजरअंदाज नहीं कर पाते हैं।
चुनावों में गंगोत्री में सत्ता से जुड़ा मिथक रहा बरकरार, राजनीतिक दल भी नहीं कर पाते इसे नजरअंदाज
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