Sunday, November 3, 2024
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उत्तराखंड में कांग्रेस को कुमाऊं से काफी उम्मीदें, हरीश रावत समेत तीन कार्यकारी अध्यक्ष हैं मैदान में

सत्ता तक पहुंचने के लिए कांग्रेस को कुमाऊं से काफी उम्मीदें हैं। पूर्व सीएम हरीश रावत कुमाऊं से ताल्लुक रखते हैं। साथ ही लालकुआं सीट से चुनाव भी लड़ रहे हैं। हरदा का यहां प्रभाव भी है। कांग्रेस के चार में से तीन कार्यकारी अध्यक्ष भी कुमाऊं से हैं। पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। मोदी लहर में भगवा खेमा 23 सीटों पर झंडा गाढऩे में कामयाब रहा। जबकि कांग्रेस को सिर्फ पांच सीट मिली थी। सिर्फ भीमताल विधानसभा में जीत का सेहरा निर्दलीय राम सिंह कैड़ा के सिर सजा। कैड़ा ने इस बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा है। 2017 के चुनाव में सिर्फ अल्मोड़ा जिले से कांग्रेस को एक से ज्यादा विधायक मिले थे। जागेश्वर से गोविंद सिंह कुंजवाल और रानीखेत से करन माहरा ने चुनाव जीता था। मगर बागेश्वर और चम्पावत में पार्टी का खाता तक नहीं खुला था। हल्द्वानी सीट से डा. इंदिरा हृदयेश जीत हासिल करने में कामयाब रही थीं। ऊधम सिंह नगर के जसपुर से आदेश चौहान और पिथौरागढ़ के धारचूला से हरीश धामी ने चुनाव जीता था। डा. इंदिरा के निधन के बाद पार्टी ने बेटे सुमित हृदयेश को टिकट दिया है। वहीं, मोदी लहर के बावजूद जीतने वाले चार अन्य विधायकों को फिर चुनावी रण में उतारा। इसके अलावा कार्यकारी अध्यक्ष भुवन कापड़ी, तिलकराज बेहड़ और रणजीत सिंह रावत को खटीमा, किच्छा और सल्ट से टिकट दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस चुनाव प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत ने वैसे तो पूरे प्रदेश में प्रचार किया। लेकिन कुमाऊं से उनका खास लगाव रहा। रैली और बड़ी सभाओं पर पाबंदी होने पर उन्होंने यहां की अधिकांश सीटों पर वर्चुअल संवाद के जरिये कार्यकर्ताओं में जोश भरा। ऐसे में पार्टी को उम्मीद है कि 2017 जैसी स्थिति इस बार नहीं होगी। रणनीति के तहत एंटी इनकमबेसी को भुनाने का भी पूरा प्रयास किया गया था। अब दस मार्च को आने वाले परिणाम पर सभी की निगाहें टिकी है।राहुल-प्रियंका भी कुमाऊं पहुंचे थे: कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने किच्छा में उत्तराखंडी किसान स्वाभिमान संवाद के जरिये तराई की इस बेल्ट में आंदोलन को भुनाने की कोशिश की थी। इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने खटीमा और हल्द्वानी में जनसभा कर महिला वोटरों को रिझाने के साथ स्थानीय मुद्दों पर भी फोकस किया। हालांकि, कांग्रेस के मुकाबले भाजपा के स्टार प्रचारकों की लिस्ट लंबी रही।

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