उत्तराखंड की लोक संस्कृति और पर्व त्योहार में प्रकृति का अपना अलग स्थान है। ऐसा ही लोकपर्व है फूलदेई, जो यहां के लोकजीवन और लोक रचनाओं में रचा-बसा है। नई उम्मीद और नई उमंग के त्योहार फूलदेई को प्रकृति के स्वागत के त्योहार के रूप में पूरे उत्तराखंड में मनाया जाता है।
चैत्र माह की सक्रांति यानी फूल संक्रांति पर हर साल उत्तराखंड के घर-गांव में फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। इस ऋतु में पतझड़ के बाद पेड़-पौधों पर नई कोंपलें खिलती हैं और फूल खिलकर प्रकृति का शृंगार कर देते हैं। प्रकृति के प्रति उत्तराखंड के लोक मानव के इस आदर को ही फूलदेई के तौर पर मनाते हैं। इस बार आज सोमवार 14 मार्च को फूलदेई का त्योहार मनाया जा रहा है। गांवों में छोटे बच्चे खासकर बेटियां अलसुबह उठकर आसपास खिले किस्म-किस्म के फूलों को चुनकर टोकरी लाते हैं। इन फूलों को गांव में हर घर की देहरी पर बिखेर कर परिवार व समाज की सुफल कामना करते हैं। इस दौरान बच्चे सामूहिक स्वर में फूलदेई से जुड़े गीतों को गाते हैं।इस त्योहार में समाज की उन्नति और संपन्नता के लिए प्रार्थना की जाती है।
रंगोली आंदोलन के तहत वर्ष 2002 से उत्तराखंड के फूलदेई त्योहार को व्यापक स्तर पर मनाते आ रहे हैं। इसमें फूलदेई पर पिछले 18 साल से आयोजन करते आ रहे हैं। -शशिभूषण मैठाणी, संस्थापक, रंगोली आंदोलन
इस त्योहार में समाज की उन्नति और संपन्नता के लिए भगवान से प्रार्थना की जाती है। यह सीधे सीधे प्रकृति से जुड़ा हुआ पर्व है। धाद फूलदेई का परिचय नई पीढ़ी से कराने को लगातार वृहद स्तर पर आयोजन कर रहा है। -लोकेश नवानी, संस्थापक धाद संस्था।
नई उमंग और नई उम्मीद का पर्व, पूरे प्रदेश में उल्लास का माहौल
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