रामनगर। पेशावर विद्रोहियों की 92वीं जयंती पर शनिवार को उस घटना के नायक चन्द्रसिंह गढ़वाली व उनके साथी सिपाहियों को याद किया गया।राजकीय इंटर कालेज ढेला व सावित्रीबाई फुले,ज्योतिबा फुले स्कूल पुछड़ी में हुए कार्यक्रमों में बच्चों ने उस घटनाक्रम को विस्तार से जाना,चित्र बनाये व फ़िल्म देखी।कार्यक्रम की शुरुआत उज्यावक दगडी सांस्कृतिक टीम की ज्योति फर्त्याल,प्राची बंगारी,हिमानी बंगारी,कोमल सत्यवली,हेमा फर्त्याल,अनुष्का बिष्ट द्वारा देशभक्ति के गीतों से हुई। ढेला की प्रार्थना सभा में बोलते हुए अंग्रेजी प्रवक्ता नवेन्दु मठपाल ने बताया कि 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में खान अब्दुल गफ्फार खां के लाल कुर्ती दल का प्रदर्शन होना था अंग्रेजों की योजना गढ़वाली फौज से गोली चलवाने की थी.इससे सीधे-सीधे साम्प्रदायिक विभाजन की खाई चौड़ी होती.पेशावर में गोली चलाने की भूमिका बनाते हुए, अंग्रेज अफसर ने इन सिपाहियों को हिन्दू-मुसलमान के झगड़े की बात ही समझाने चाही.पर चन्द्रसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में सिपाहियों ने उनकी योजना पर पलीता लगा दिया।सावित्रीबाई फुले स्कूल में बोलते हुए शिक्षिका अंजलि रावत ने कहा कि अंग्रेजी फौज में रहते हुए स्वतंत्रता सेनानियों पर गोली चलाने से इंकार करने की इस घटना ने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई का एक नया मोर्चा खोल दिया.ज्योतिबा फुले स्कूल के शिक्षक सुमित कुमार ने बताया कि इन सिपाहियों ने अंग्रेजों के द्वारा एक साम्प्रदायिक कांड रचने की कोशिश के खिलाफ खड़े हो कर,उसे अंग्रेजी राज के खिलाफ एक बहादुराना विद्रोह में तब्दील कर दिया.
पेशावर विद्रोह की इस परम्परा को आज भी समझे जाने की जरूरत है. ढेला के बच्चों ने कला शिक्षक प्रदीप शर्मा के दिशा निर्देशन में चन्द्रसिंह गढ़वाली का चित्र बनाया और उत्तराखण्ड फ़िल्म और नाट्य संस्थान द्वारा उस घटनाक्रम की नाट्य प्रस्तुति के फिल्मांकन को भी देखा।इस मौके पर प्रधानाचार्य श्रीराम यादव,मनोज जोशी,सी पी खाती, नफीस अहमद,सन्त सिंह,दिनेश निखुरपा,सुभाष गोला,बालकृष्ण चंद,उषा पवार,दीपा सती,आशा आर्या पद्मा, नरेश कुमार,कशिश मौजूद रहे।
92वीं जयंती पर याद किये गए पेशावर विद्रोह के सिपाही
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