2019 में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता डॉ. इंदिरा हदयेश की तमाम कोशिशों के बावजूद सुमित हृदयेश को निकाय चुनाव में करीब 10 हजार वोटों से हार मिली। कारण जानने के लिए मंथन हुआ तो सबसे पहली बात वही निकली जिसका कांग्रेस को पहले से ही आभास था। दरअसल, इस निकाय चुनाव से ठीक पहले कालाढूंगी विधानसभा के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों को नगर निगम में जोड़ दिया गया था। ये वही गांव थे जहां भाजपा का अपना अच्छा खासा वोट बैंक था। इन्हीं गांवों के वोट पाकर डॉ. जोगेंद्र रौतेला फिर से मेयर बने। भाजपा का ये पैंतरा 2022 विधानसभा चुनाव में उल्टा पड़ गया।
2019 में निकायों में चुनाव हुए। हल्द्वानी नगर निगम में भाजपा समर्थित प्रत्याशी डॉ. जोगेंद्र रौतेला व कांग्रेस वरिष्ठ नेत्री इंदिरा हृदयेश के बेटे सुमित हृदयेश में सीधी टक्कर थी। माना जा रहा था कि नगर क्षेत्र के वनभूलपुरा, इंदिरानगर समेत कई अन्य ऐसे मोहल्लों-वार्डों में कांग्रेस का दबदबा सुमित के काम आएगा। लेकिन भाजपा ने अपना पैंतरा चलते हुए कालाढूंगी विधानसभा क्षेत्र के कुछ ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों को भी परिसीमन के बाद नगर निगम में शामिल करा लिया जिनमें भाजपा की अच्छी खासी पकड़ थी। इन ग्रामीण क्षेत्रों में उस समय भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे बंशीधर भगत का काफी दबदबा था। इस समीकरण से डॉ. जोगेंद्र रौतेला मेयर का चुनाव जीतने में कामयाब रहे। इधर, 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा का निकाय चुनाव वाला पैंतरा उल्टा पड़ गया। हल्द्वानी विधानसभा का अधिकांश हिस्सा शहरी है जिनमें से कुछ क्षेत्रों को छोड़कर अधिकतर में कांग्रेस का वर्चस्व है। वनभूलपुरा और इंदिरा नगर क्षेत्र के करीब 30 से 40 हजार वोटरों का सपोर्ट हमेशा से ही कांग्रेस को मिलता रहा है। यही वोटर डॉ. जोगेंद्र रौतेला की हार का सबसे अहम कारण बने।
मेयर बनने को खेला खेल भाजपा पर पड़ा भारी
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