Tuesday, September 2, 2025
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देवभूमि में पौधों को जिंदा रखने के लिए मिलेगी ‘जन औषधि’, तैयार किया जा रहा प्रोटोकाल

पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड के जंगलों में हर साल एक से डेढ़ करोड़ पौधे लगाए जा रहे, लेकिन इनमें से जीवित कितने बचते हैं यह अपने आप में बड़ा प्रश्न है। यदि रोपे गए 50 प्रतिशत पौधे भी जिंदा रहते तो राज्य में वनावरण काफी अधिक बढ़ जाता, जो अभी भी 46 प्रतिशत के आसपास सिमटा है।
देर से ही सही, अब उत्तराखंड वन विभाग को इसका एहसास हुआ है। विभाग पौधारोपण की मानीटरिंग के लिए प्रोटोकाल तैयार कर रहा है। यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैंपा) के अंतर्गत होने वाले पौधारोपण में 10 साल तक 70 प्रतिशत रोपित पौधे जीवित रहें। पौधे बचाने में 12089 वन पंचायतों के साथ ही ग्रामीणों का सक्रिय सहयोग लिया जाएगा। वन क्षेत्रों में किए जाने वाले पौधारोपण में सौ में 70 पौधों का जीवित रहना आदर्श स्थिति मानी जाती है, लेकिन राज्य की तस्वीर बताती है कि ऐसा नहीं हो पा रहा। इसके पीछे प्राकृतिक आपदा, पौधारोपण क्षेत्रों में पशुओं का चुगान, जंगल की आग जैसे कारण जरूर गिनाए जाते हैं, लेकिन इससे विभाग अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता है।
जैसी परिस्थितियां हैं, वह बताती हैं कि मानीटरिंग के मोर्चे पर कहीं न कहीं खामी है। पौधे रोपित कर उन्हें अपने हाल पर छोडऩे की परिपाटी भारी पड़ रही है। वनों को पनपाने के मामले में विभाग आमजन का सहयोग उस अनुरूप नहीं ले पा रहा, जिसकी दरकार है। पौधारोपण को लेकर निरंतर उठते प्रश्नों के बीच अब विभाग ने नीतियों में बदलाव करने के साथ ही जन के सहयोग से वनों को पोषित करने की दिशा में कदम बढ़ाने का फैसला किया है।
हर स्तर पर होगी मानीटरिंग
वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक विनोद कुमार सिंघल के अनुसार पौधारोपण के लिए अलग से प्रोटोकाल तैयार किया जा रहा है। इसमें क्षेत्र का चयन, वहां लगने वाले पौधों की प्रजाति, पौधों के संरक्षण में जन भागीदारी, पौधों की निरंतर निगरानी जैसे बिंदु शामिल किए जा रहे हैं। इस बार से ही इसे लागू किया जाएगा।
पांच वर्ष हो देखभाल की जिम्मेदारी
मौजूदा नीति में रोपित पौधों की तीन वर्ष तक ही देखभाल का प्रविधान है, लेकिन अब यह अवधि कम से कम पांच वर्ष करने का प्रस्ताव शासन को भेजा जा रहा है। यद्यपि मौजूदा व्यवस्था में भी बजट दिक्कत खड़ी हो रही हैं।
जन की होगी सक्रिय भागीदारी
उत्तराखंड देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां वन पंचायतें अस्तित्व में हैं। प्रदेश में 12089 वन पंचायतें हैं, जिनके सदस्यों की संख्या 108801 है। वन पंचायतें अपने अधीन वन क्षेत्रों की स्वयं देखभाल करती हैं। अब वन पंचायतों का सहयोग उनके नजदीकी आरक्षित वन क्षेत्रों में भी पौधारोपण में लिया जाएगा। ग्रामीणों को विभाग इसके लिए प्रेरित करेगा।
कैंपा से भी बदलेगी तस्वीर
71.05 प्रतिशत वन भूभाग होने के कारण राज्य में विभिन्न योजनाओं, परियोजनाओं के लिए वन भूमि लेना विवशता है। जो वन भूमि हस्तांतरित की जाती है, उसमें खड़े पेड़ों का 10 गुना अधिक अन्य स्थानों पर क्षतिपूरक पौधारोपण किया जाता है। वन विभाग के मुखिया के अनुसार कैंपा में ये व्यवस्था की जा रही है कि क्षतिपूरक पौधारोपण की कम से कम 10 साल तक देखभाल हो। यह सुनिश्चित हो कि इस अवधि तक 70 प्रतिशत पौधे जीवित रहें।

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