देवभूमि उत्तराखंड में दिख रहे जनसांख्यिकीय बदलाव (डेमोग्राफिक चेंज) और इसके चलते हो रहा पलायन कुछ वर्षों से बुद्धिजीवियों के बीच विमर्श का विषय बना हुआ है। धर्मनगरी हरिद्वार से लेकर चारधाम यात्रा मार्गों से लगे क्षेत्रों में जिस तरह से मुस्लिम आबादी बढ़ रही है, उसे समाजशास्त्रियों का बड़ा वर्ग स्वाभाविक नहीं मान रहा है। इससे उत्तराखंडी समाज में तमाम तरह की शंका-आशंका घर कर रही है। प्रदेश सरकार ने भी इसी चिंता के मद्देनजर जिला स्तरीय समितियां गठित की हैं। साथ ही क्षेत्र विशेष में भूमि की खरीद-फरोख्त पर खास निगरानी के निर्देश जिलाधिकारियों को दिए गए हैं। प्रदेश की स्थिति पर नजर दौड़ाएं तो हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर, देहरादून व नैनीताल ऐसे जिले हैं, जहां परिवर्तन अधिक देखने में आ रहा है। वर्ष 2001 और वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि उत्तराखंड का पहाड़ी क्षेत्र पलायन की मार से जूझ रहा है। इस परिदृश्य के बीच बड़े पैमाने पर बाहर से आए व्यक्तियों, विशेषकर एक समुदाय विशेष के व्यक्तियों ने पिछले 10-11 वर्षों में यहां न सिर्फ ताबड़तोड़ जमीनें खरीदीं, बल्कि उनकी बसागत भी तेज हुई है। इस सबको देखते हुए पिछले वर्ष से उत्तराखंड में ‘लैंड जिहाद’ शब्द लगातार चर्चा में है। इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर तो इसे लेकर बहस का क्रम जारी है तो अब आमजन के बीच भी यह चिंता का विषय बनकर उभरा है।