Wednesday, November 12, 2025
Homeमनोरंजनबिहार चुनाव 2025: खामोशी में छिपा सियासी गणित — एनडीए ने ‘परिवर्तन...

बिहार चुनाव 2025: खामोशी में छिपा सियासी गणित — एनडीए ने ‘परिवर्तन की लहर’ को ‘स्थिरता की हवा’ में बदला

बिहार चुनाव में टूटा मिथक: ‘ज्यादा वोटिंग मतलब सत्ता परिवर्तन’ — इस बार खामोशी ने किया कमाल

पटना:
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के एग्जिट पोल और शुरुआती रुझानों ने एक बार फिर पुराना सियासी समीकरण उलट दिया है। माना जा रहा था कि रिकॉर्ड मतदान सत्ता विरोध का संकेत है, लेकिन एनडीए ने इस ‘बंपर वोटिंग’ को अपने पक्ष में बदल लिया। नीतीश कुमार की ‘निश्चय वाली राजनीति’ और भाजपा के बूथ मैनेजमेंट ने मिलकर उस ‘परिवर्तन की लहर’ को थाम लिया जो तेजस्वी यादव के नेतृत्व में दिख रही थी।


65–70 प्रतिशत मतदान का अर्थ बदल गया

दो चरणों में करीब 70 प्रतिशत तक की वोटिंग को विश्लेषक पहले “बदलाव का संकेत” मान रहे थे, लेकिन अब तस्वीर उलटी है। एग्जिट पोल में एनडीए को बढ़त मिलती दिख रही है, जिससे साफ है कि जनता ने इस बार सिर्फ उत्साह में नहीं, बल्कि ठोस गणित के साथ मतदान किया है।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, यह केवल जनता की पसंद नहीं बल्कि भाजपा-जदयू के बारीक बूथ प्रबंधन की जीत भी है। हर क्षेत्र में कोर वोटर्स को संगठित तरीके से बाहर लाना एनडीए की रणनीति का अहम हिस्सा रहा।


अमित शाह की रणनीति और महिला वोटर का भरोसा

एनडीए ने इस बार जमीनी रणनीति पर पूरा फोकस रखा। प्रवासी बिहारी वोटरों को गांव वापस बुलाने से लेकर महिला मतदाताओं तक को साधने की कोशिशें की गईं। ग्रामीण इलाकों में महिलाओं के बीच सुरक्षा, सरकारी योजनाओं की निरंतरता और कल्याणकारी नीतियों पर भरोसे का संदेश पहुंचाया गया।
नतीजा यह हुआ कि महिलाओं और वरिष्ठ मतदाताओं ने नीतीश सरकार को स्थिरता का प्रतीक मानते हुए वोट दिया।


तेजस्वी की युवाशक्ति और अनुभव की कमी

तेजस्वी यादव ने इस चुनाव में युवा मतदाताओं को रैली, रोजगार के वादों और सोशल मीडिया के जरिए खूब आकर्षित किया। लेकिन उनके वादों पर भरोसे की कमी ने असर डाला। युवाओं के बीच यह धारणा बनी कि “बदलाव तो जरूरी है, लेकिन क्या यह भरोसेमंद होगा?” यही संदेह उनके समीकरणों को कमजोर करता गया।
दूसरी ओर, नीतीश कुमार का “निश्चय नीतीश” फैक्टर ग्रामीण इलाकों में भरोसे का प्रतीक बना रहा, जिसने ‘बदलाव की मांग’ को थाम लिया।


सीमांचल में मुस्लिम वोटर एकजुट, फिर भी तस्वीर उलटी क्यों?

सीमांचल इलाकों में मुस्लिम वोटरों की बड़ी भागीदारी महागठबंधन के लिए राहतभरी थी, लेकिन यह एकजुटता गैर-मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण से टकरा गई। एग्जिट पोल के मुताबिक, एनडीए के पक्ष में जबरदस्त संगठित वोटिंग ने महागठबंधन की उम्मीदों को कमजोर कर दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, “एक वर्ग की एकजुटता ने दूसरे वर्ग को और ज्यादा एकजुट कर दिया,” जिससे विपक्ष का समीकरण बिगड़ गया।


‘बोलती खामोशी’ का संकेत

पटना की गलियों से लेकर गांवों तक माहौल शांत जरूर है, लेकिन इस खामोशी में गहरा संदेश छिपा है। एक स्थानीय पानवाले की बात इस सच्चाई को बयां करती है —

“अरे साहब, हवा से अब सरकार नहीं बनत, जनता खुदे मन बनावत है।”

यानी, बिहार के मतदाता अब हवा या प्रचार के आधार पर नहीं, बल्कि ठोस सोच और अनुभव से वोट करते हैं। यही साइलेंट वोटर इस बार गेम चेंजर बनता दिख रहा है।


अंतिम फैसला 14 नवंबर को

अब सबकी निगाहें 14 नवंबर पर टिकी हैं, जब चुनाव परिणाम आएंगे। तब तय होगा कि एग्जिट पोल की भविष्यवाणियां सही साबित होती हैं या बिहार का साइलेंट वोटर एक बार फिर सबको चौंका देता है।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments