हरिद्वार नगर निगम के बहुचर्चित जमीन घोटाले में निलंबित किए गए दो आईएएस अधिकारियों के निलंबन को लेकर 2 जनवरी को अहम फैसला लिया जाएगा। कार्मिक विभाग की बैठक में यह तय किया जाएगा कि दोनों आईएएस अफसरों को बहाल किया जाए या फिर नियमानुसार उनका निलंबन आगे बढ़ाया जाए। वहीं, इस मामले में निलंबित पीसीएस अधिकारी की जांच रिपोर्ट शासन को प्राप्त हो चुकी है, जिस पर अब उनसे जवाब तलब करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
उत्तराखंड में जून महीने में सामने आए इस घोटाले में शासन ने दो आईएएस और एक पीसीएस अधिकारी के खिलाफ विभागीय चार्जशीट जारी की थी। आरोपों की गंभीरता को देखते हुए तीनों अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था। मामला हरिद्वार नगर निगम द्वारा ग्राम सराय क्षेत्र में कूड़े के ढेर के पास स्थित 2.3070 हेक्टेयर अनुपयुक्त भूमि को लगभग 54 करोड़ रुपये में खरीदे जाने से जुड़ा है। इस जमीन खरीद को लेकर भारी अनियमितताओं और नियमों की अनदेखी के आरोप लगे थे।
जमीन खरीद पर सवाल उठने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पूरे मामले की जांच के आदेश दिए थे। प्रारंभिक जांच की जिम्मेदारी सचिव रणवीर सिंह चौहान को सौंपी गई थी, जिन्होंने 29 मई को अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी। जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करते हुए 3 जून को हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी कर्मेन्द्र सिंह, नगर आयुक्त आईएएस वरुण चौधरी और तत्कालीन एडीएम अजयवीर सिंह को निलंबित कर दिया गया था।
इसके बाद शासन ने दोनों आईएएस अधिकारियों की विभागीय जांच सचिव सचिन कुर्वे को सौंपी, जबकि पीसीएस अधिकारी अजयवीर सिंह की जांच अपर सचिव आनंदस्वरूप को दी गई। पीसीएस अधिकारी की जांच अब पूरी हो चुकी है और रिपोर्ट के बिंदुओं पर उनसे शीघ्र ही जवाब मांगा जाएगा।
कार्मिक विभाग के अनुसार, 2 जनवरी को होने वाली बैठक में यह निर्णय लिया जाएगा कि दोनों आईएएस अधिकारियों को बहाल किया जाए या उनका निलंबन छह माह के लिए और बढ़ाया जाए। नियमों के तहत राज्य सरकार किसी आईएएस अधिकारी को अधिकतम 12 माह तक ही निलंबित रख सकती है। इसके बाद निलंबन से जुड़ा अंतिम निर्णय केंद्र सरकार के स्तर पर लिया जाता है।
हरिद्वार जमीन घोटाले को लेकर होने वाला यह फैसला प्रशासनिक और राजनीतिक दृष्टि से काफी अहम माना जा रहा है।