तकनीक के बढ़ते उपयोग के साथ ही अपराध के तरीके भी बदलने लगे हैं। जेब कटने की घटनाओं में कमी और साइबर ठगी के बढ़ते मामले इसका बड़ा उदाहरण है। इन्हें रोकने में पुलिस के भी पसीने छूट रहे हैं। कुमाऊं क्षेत्र की बात करें तो यहां 2019 में साइबर ठगी के 132 मामले सामने आए, जबकि जेब काटने की 54 शिकायतें पुलिस को मिलीं। साल 2020 में कोरोना ने दस्तक दी और लंबे समय तक लोग घरों में कैद रहे। नियमों में छूट मिलने पर घरों से बाहर निकले तो एक-दूसरे से दूरी बनाए रखी। ऐसे में जेब कटने की घटनाओं में बड़ी गिरावट आई। पूरे साल में मात्र 36 शिकायतें पुलिस तक पहुंचीं। जबकि साइबर ठगी के मामले 156 पहुंच गए। 2021 में तो जेब काटने की महज तीन शिकायतें दर्ज हुईं, जबकि साइबर ठगों ने 257 लोगों के खाते खाली कर दिए। 2022 में अप्रैल अंत तक साइबर ठगी की घटनाओं का आंकड़ा 150 पार पहुंच चुका है। मतलब हर महीने 30 से अधिक घटनाएं दर्ज हो रही हैं। जबकि 2019 में प्रतिमाह यह संख्या 11 के आसपास थी। इस साल अब तक जेब काटने की एक भी शिकायत नहीं है।
जेब में नगदी नहीं, काटने में भी रिस्क
वर्तमान में ऑनलाइन पेमेंट का चलन बढ़ने से लोग जेब में काफी कम नगदी रखने लगे हैं। वहीं जेब काटने के दौरान पकड़े जाने का रिस्क भी होता है। भीड़ में पकड़े जाने पर पिटाई की आशंका भी रहती है। जबकि साइबर ठगी में इस प्रकार का रिस्क नहीं के बराबर होता है।
फर्जी वेबसाइट से बनाते हैं शिकार
आप इंटरनेट पर कुछ भी सर्च करते हैं तो उसके कई लिंक मिलते हैं। कई फर्जी वेबसाइट में इनक्वारी के लिए नंबर भी दिया होता है। उस नंबर से मदद मांगने पर आपसे पर्सनल डिटेल पूछी जाती हैं। जैसे ही आप अपनी महत्वपूर्ण जानकारी या मोबाइल पर आया ओटीपी शेयर करते हैं, खाते से रकम निकाल ली जाती है।
कोरोना के बाद जेबकतरे घटे, खातों में डकैती बढ़ी: 4 साल में तीन गुणा बढ़ें साइबर ठगी के मामले, 95 फीसदी जेब काटने की घटनाओं में कमी
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