हिमालयी राज्य उत्तराखंड में सरकारी तंत्र को समयबद्ध विकास के लिए पर्यावरण के मंत्र सीखने की दरकार है। इस मंत्र के अभाव में राज्य की बड़ी से लेकर छोटी परियोजनाओं में पर्यावरण संरक्षण सबसे बड़ा सवाल रहा है। पर्यावरणीय तकाजों की वजह से सैकड़ों करोड़ के निवेश के बावजूद 20 से अधिक बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं लटक गईं।सामरिक महत्व की 12 हजार करोड़ लागत की चारधाम ऑलवेदर रोड परियोजना भी पर्यावरणीय सरकारों की वजह से तय समय पर पूरी नहीं हो पाई। तमाम नजीर हैं जब सर्वोच्च अदालत को पर्यावरणीय सवालों पर केंद्र और राज्य की जिम्मेदारी एजेंसियों को ताकीद करना पड़ा।
विकास को समर्पित हुई हजारों हेक्टेयर वन भूमि
पिछले करीब 22 वर्षों में मोटर मार्गों, अन्य अवस्थापना कार्यों, बिजली परियोजनाओं व अन्य कार्यों के लिए हजारों हेक्टेयर वन भूमि विकास के लिए समर्पित की गई। भारतीय वन सर्वेक्षण 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में 2015-19 के बीच 2850 हेक्टेयर वन भूमि का हस्तांतरण हुआ।
विकासकर्ता बनाम पर्यावरण कार्यकर्ता
राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड में जल, जंगल जमीन के मुद्दे पर विकासकर्ताओं और पर्यावरण कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष की स्थिति है। करीब 12 हजार करोड़ की 889 किमी चारधाम ऑलवेदर रोड परियोजना भी पेड़ों के कटान और मलबे के निपटान को लेकर अदालती विवाद में उलझी रही। इसका नतीजा यह हुआ कि जिस परियोजना को 2022 तक हर हाल में पूरा हो जाना चाहिए था, उसे अभी काफी वक्त लगेगा। पर्यावरणीय कायदों पर अमल करते हुए परियोजना पर काम होता तो शायद समय और धन की बर्बादी होने से बच जाती।
सरकारी महकमे पहली बार सीखेंगे कैसे रखें पर्यावरण का ख्याल
राज्य गठन के 22 साल बाद पहली बार निर्माण से जुड़े सरकारी महकमे सीखेंगे कि विकास कार्यों के बीच पर्यावरण का ख्याल कैसे रखना है? वन महकमे की पहल पर सरकारी विभागों के लिए चार जून को एक कार्यशाला होने जा रही है। इस कार्यशाला में विशेषज्ञ अलग-अलग विषयों पर सरकारी महकमों से जुड़े अफसरों को पर्यावरण का मंत्र देंगे। कार्यक्रम के सूत्रधार अपर प्रमुख वन संरक्षक (पर्यावरण) एसएस रसाईली कहते हैं, पर्यावरणीय संवेदनशीलता धरती पर जीवन को संभव बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन उतना ही जरूरी राज्य के विकास कार्य को पर्यावरण से संबंधित विधिक मानकों के अनुरूप कार्य करने के लिए भी आवश्यक है। वन मुख्यालय परिसर में होने वाली इस कार्यशाला में वन एवं पर्यावरण संरक्षण- आवश्यकता या विलासिता, पर्यावरण संरक्षण में सामान्य जनमानस की चिंताएं एवं अपेक्षाएं, वन संरक्षण अधिनियम 1980 के प्रावधान और उनका पालन, पर्यावरण मित्र अभियांत्रिकी की संभावनाएं जैसे अहम विषयों पर विशेषज्ञ अपनी राय रखेंगे।
पर्यावरणीय जागरूकता की कमी, होता है टकराव
पर्यावरणीय जागरूकता की कमी से निर्माण कार्यों से जुड़ी सरकारी एजेंसियां के बीच टकराव के हालात पैदा हो जाते हैं। अकसर वन महकमा पर्यावरणीय सवालों के कठघरे में दिखाई देता है। अटके विकास कार्यों का ठीकरा एक-दूसरे पर फोड़ने की ऐसी तमाम कहानियां सामने आती हैं।
इन महकमों के प्रतिनिधि होंगे शामिल
कार्यशाला में लोनिवि, सिंचाई, ग्रामीण विकास, पेयजल, जल संस्थान, ऊर्जा समेत निर्माण कार्यों से जुड़े महकमों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
ये विशेषज्ञ देंगे व्याख्यान
अपर प्रमुख संरक्षक वन एवं पर्यावरण डॉ. समीर सिन्हा, समाजसेवी अनूप नौटियाल, सीबीआरआई के निदेशक अशोक कुमार, एफआरआई के विशेषज्ञ।
चारधाम ऑलवेदर रोड से लेकर मोटर मार्गों तक में पर्यावरण संरक्षण बड़ा सवाल
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