अल्मोड़ा। कोरोनाकाल के बाद ऑफलाइन पढ़ाई शुरू होने के बाद बच्चे स्कूल जाने लगे हैं। छोटे बच्चे अप्रैल से स्कूल जाएंगे। अभिभावक भी बच्चों को स्कूल भेजने के लिए पूरी तरह तैयार है। अभिभावकों का कहना है कि नए-नए एप कभी भी क्लास रूम की जगह नहीं ले पाएंगे।
अभिभावकों का कहना है कि कोरोनाकाल में बच्चों ने भले ही मजबूरी में ऑनलाइन क्लास पढ़ी हो लेकिन अब वह स्कूल जाना चाहते हैं। स्कूल जाने के लिए बच्चे बेचैन हैं। स्कूलों में विद्यार्थियों के लिए तमाम तरह की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। मसलन प्रेक्टिकल के लिए विज्ञान लैब, पुस्तकालय, खेल मैदान, प्रोजेक्टर, ब्लैक बोर्ड, स्मार्ट क्लास रूम सहित अन्य सुविधाएं बच्चों को मिलती है। पर घर में ये सुविधाएं नहीं मिल सकती। इस कारण अधिकतर छात्र स्कूल जाना चाहते हैं। ऑनलाइन एजूकेशन मजबूरी के साथ जरूरी भी है। स्टूडेंट अब स्कूल खुुलने का इंतजार कर रहे हैं। लगातार नए एप के जरिए शिक्षक ऑनलाइन एजूकेशन को अधिक रुचिकर बनाने का प्रयास कर रहे हैं जिसमें ग्राफिक्स से लेकर तमाम अन्य डिजायन का उपयोग भी कर रहे हैं। वीडियो को भी अधिक बेहतर बनाने के लिए माइक, अच्छे मोबाइल का उपयोग कर रहे हैं। इन सभी के बाद भी ऑनलाइन एजूकेशन फिजिकल क्लासरूम की जगह नहीं ले सकी। ऑनलाइन एजुकेशन शहरी एरिया में काफी हद तक कामयाब है लेकिन ग्रामीण एरिया में सफल नहीं रही। कोरोनाकाल में ऑनलाइन पढ़ाई जरूरी थीं। इससे बच्चे व्यस्त रहे। नेट की रफ्तार से कई बार पढ़ाई में व्यवधान भी रहा। अब स्कूल में ऑफलाइन पढ़ाई को लेकर बच्चे उत्सुक है। अशोक सिंह, अभिभावक
ग्रामीण इलाकों में कई बार नेट कनेक्टविटी अच्छी नहीं रही। जिस कारण ऑनलाइन पढ़ाई भी बाधित हुई। स्कूल जाने के बाद बच्चों को फिर से ऑफलाइन क्लासेज में बेहतर शिक्षा मिलेगी। प्रदीप मेहरा, अभिभावक
ऑनलाइन पढ़ाई नहीं ले सकती है स्कूल की जगह
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