चंपावत। यह कोई बगीचा नहीं, मकान है। यहां तिमंजिले मकान में तैयार की गई पौधशाला और बगिया पर्यावरण संरक्षण और हरियाली बचाने के लिए छोटी लेकिन नायाब पहल है। विविध प्रकार के इन पेड़-पौधों की खूबसूरती और हरियाली लोगों को खूब भा रही है। यह नन्हा प्रयास आमदनी बढ़ाने का जरिया भी बन रहा है।
जीआईसी क्षेत्र में मुकेश गिरि ने हरियाली की नई पहल शुरू की है। मकान के तीसरी मंजिल से लेकर कमरे, बरामदे, सीढ़ियों तक में गमलों में पौधे लगाए गए हैं। साढ़े पांच हजार वर्ग फीट क्षेत्रफल में फल, फूल और औषधीय श्रेणी के 41 हजार से अधिक पौधे लगाए गए हैं। इनमें फलों की प्रजाति में हर्बल सेब, पपीता, कीवी, कीनू, नीबू, नाशपाती और बादाम आदि के पौधे शामिल हैं। औषधीय पौधों में एलोवेरा, सुगंधा, रोजमेरी आदि बगिया की शोभा बढ़ा रहे हैं। चंपा, सपनेरा आदि पुष्पों की कई प्रजातियां भी बगिया को महका रही है। कुछ हिस्सा पॉलीहाउस से संरक्षित किया गया है। पर्यावरण संरक्षण में मददगार इन पौधों से न केवल हवा, हरियाली और खुशगवार आबोहवा हो रही है, बल्कि इलाके के सौंदर्य में भी चार चांद लग रहे हैं। इसकी खूबसूरती से लोग यहां ध्यान लगाने के साथ पर्यावरण प्रेमी लोग जन्म दिन मनाने को भी पहुंच रहे हैं। 2020 में तैयार यह बगीचा अब नियमित आमदनी का स्रोत है। चंपावत, लोहाघाट, पिथौरागढ़ के अलावा मैदानी क्षेत्र के लोग न केवल यहां की हरियाली देखने आते हैं, बल्कि पौधे खरीदकर ले भी जाते हैं। गिरि बताते हैं कि सरकारी मदद के बगैर शुरू इस काम से अब सालाना सवा लाख रुपये की आय हो रही है। साथ ही लोग भी इससे प्रेरित हो रहे हैं।
कोरोना लॉकडाउन से मिली राह
चंपावत। छत में हरियाली की प्रेरणा युवा मुकेश गिरि को कोविड लॉकडाउन के दौरान मार्च 2020 में मिली। बागवानी का शुरू से शौक रखने वाले मुकेश ने इस दौरान इस काम को नए सिरे से शुरू किया। व्यापारिक गतिविधियां बंद होने से इस ओर ध्यान देना शुरू किया। इसे व्यापारिक स्वरूप देने के लिए उन्हें जिला विकास अधिकारी एसके पंत ने प्रेरित किया। गिरि ने दिल्ली, भवाली, नैनीताल आदि जगहों से पौधे मंगा उन्हें लगाना और परवरिश करना शुरू किया। पत्नी सरिता, पुत्र आदित्य, मायरा, प्रभा, दीपक बोहरा सहित पूरे परिवार ने इस काम में हाथ बंटाया। गिरि बताते हैं कि इसकी देखरेख, कटिंग सहित तमाम काम में परिवार रोजाना चार से छह घंटे लगाता है।
बगीचा नहीं, ये घर है जनाब
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