उत्तराखंड की मूल निवासी महिलाओं को सरकारी नौकरियों में मिल रहे 30 प्रतिशत आरक्षण के मामले में कानूनी पेच फंस गया है। अब सरकार आरक्षण को बचाने के लिए निर्णायक कानूनी जंग की तैयारी कर रही है। ऐसे संकेत हैं कि उसकी यह जंग सुप्रीम कोर्ट तक जा सकती है। दरअसल झगड़ा संविधान के दो अनुच्छेदों के अंतरविरोध का है। संविधान के एक अनुच्छेद में साफ कहा गया है कि कोई भी राज्य डोमेसाइल के आधार पर आरक्षण नहीं दे सकता, जबकि संविधान का एक अन्य अनुच्छेद राज्य को महिलाओं के लिए विशेष कानून बनाने का अधिकार देता है। राज्य सरकार इसी अनुच्छेद के आधार पर महिलाओं के क्षैतिज आरक्षण की पैरवी कर रहा है।
सरकार के सभी विकल्प खुले
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, न्यायालय में दोनों शासनादेशों पर रोक लगने के बाद अब राज्य सरकार विधिक परामर्श में जुट गई है। सरकार ने अभी सभी विकल्प खुले रखे हैं। आरक्षण को बचाने के लिए अध्यादेश लाने की प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी थी। कार्मिक विभाग को न्याय विभाग से इस पर परामर्श प्राप्त हो चुका है। सूत्रों का कहना है कि न्याय विभाग ने पूछा है कि इस प्रकरण में मामला न्यायालय में विचाराधीन तो नहीं है। यहां शासन थोड़ा उलझ गया है।
राज्य को है विशेष कानून बनाने का अधिकार
संविधान का अनुच्छेद 15(3) राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष कानून बनाने का अधिकार देता है। महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के मद्देनजर सरकार यदि कोई ऐसा कानून बनाती है, जिससे महिलाओं का उत्थान हो सके तो वह इस अनुच्छेद के तहत सांविधानिक माना जाएगा।
डोमेसाइल के आधार पर आरक्षण राज्य नहीं दे सकता
संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी। अनुच्छेद 16(3) कहता है कि राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के सबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा न उससे विभेद किया जाएगा। राज्य डोमेसाइल के आधार पर आरक्षण नहीं दे सकता। यह कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को है।
मसला गहन सांविधानिक चर्चा का है
जब तक आदेश की प्रति प्राप्त नहीं हो जाती है, कुछ भी कहना संभव नहीं। हम आदेश का इंतजार कर रहे हैं। कोर्ट में हमने संविधान के अनुच्छेद 15(3) के आधार पर पैरवी की कि राज्य सरकार महिलाओं को आरक्षण दे सकती है। यह मसला गहन सांविधानिक चर्चा का है। – एसएन बाबुलकर, महाधिवक्ता, उत्तराखंड सरकार
आदेश का अध्ययन करेंगे : सीएम
आदेश की प्रति प्राप्त करने के बाद उसका अध्ययन करेंगे। महिलाओं के हित के लिए जो भी आवश्यक होगा, राज्य सरकार वह करेगी। – पुष्कर सिंह धामी, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड
राज्य को आरक्षण देने का अधिकार नहीं
प्रदेश सरकार को डोमेसाइल के आधार पर आरक्षण देने का सांविधानिक अधिकार नहीं है। उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया जाना संविधान के अनुच्छेद 14,16,19 और 21 के खिलाफ है। – कार्तिकेय हरिगुप्ता (याचिकाकर्ता के अधिवक्ता)
सरकार को पहले भी लग चुके हैं झटके
प्रदेश सरकार को राज्य आंदोलनकारियों के 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण पर भी न्यायालय से झटका लग चुका है। कोर्ट ने आरक्षण वाले शासनादेश को रद्द कर दिया था। कोर्ट के आदेश के बाद ही खिलाड़ियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण कोटा भी खत्म हुआ था।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में यह उठाया मसला
उच्च न्यायालय में याचिकाकर्ताओं ने कहा कि राज्य के लोकसेवा आयोग की प्रवर अधीनस्थ सेवा परीक्षा में उत्तराखंड मूल की महिलाओं को अनारक्षित श्रेणी में 30 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। इस कारण वे परीक्षा से बाहर हो गईं।
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